यह कहानी एक छोटे से गाँव में घटी एक अजीब और डरावनी घटना पर आधारित है। गाँव में रात के समय कुछ अजीब घटनाएँ हो रही थीं। लोग रात को घरों से बाहर नहीं निकलते थे क्योंकि वे महसूस करते थे कि गाँव में कुछ असामान्य चल रहा था। ये घटनाएँ सिर्फ एक ही रात में नहीं, बल्कि कई महीनों से लगातार हो रही थीं। हर कोई दहशत में था और किसी ने भी खुलकर इस बारे में बात नहीं की थी, क्योंकि डर ने गाँव को अपनी जकड़ में ले लिया था।
गाँव के सबसे बड़े घर में कुछ बहुत अजीब हो रहा था। यह घर कई सालों से बंद था, और लोग कहते थे कि वहाँ पर प्रेतों का वास था। लेकिन एक दिन एक युवक, कृष्ण, जो गाँव से बाहर पढ़ाई करके लौटा था, ने तय किया कि वह इस घर की सच्चाई जानने के लिए रात में उस घर में रहेगा। कृष्ण को न तो भूत-प्रेतों से डर लगता था और न ही किसी अजीब चीज से। वह यह समझता था कि यह सब केवल गाँववालों की काल्पनिक बातें हैं, और उसने ठान लिया था कि वह इस रहस्य को सुलझाएगा।
रात का समय था, और कृष्ण उस डरावने घर के अंदर अकेला था। घर के अंदर हर चीज़ धूल से ढकी हुई थी और चारों ओर अजीब सन्नाटा था। वह कमरे में अंदर दाखिल हुआ और पुराने बिस्तर पर लेटकर सोने की कोशिश करने लगा। अचानक, उसे कमरे के एक कोने से कुछ हलचल सुनाई दी। उसने सोचा कि शायद कुछ चूहे हों, लेकिन यह आवाज़ कुछ और थी, जैसे किसी के कदमों की आवाज़ हो, जो धीरे-धीरे उसके पास आ रही थी। कृष्ण ने अपनी नज़रें चौकस कीं, लेकिन उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया।
कृष्ण ने अपने कानों को और तेज किया। आवाज़ धीरे-धीरे तेज़ होती जा रही थी, और अब उसे समझ में आ गया कि यह किसी इंसान के कदमों की आवाज़ थी, जो धीरे-धीरे कमरे में आ रही थी। वह घबराया हुआ था, लेकिन उसने सोचा कि यह सिर्फ उसका डर हो सकता है। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और सोने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही वह सोने ही वाला था, अचानक कमरे का दरवाजा बुरी तरह से बंद हो गया। उसकी धड़कन तेज़ हो गई, और उसने डरते हुए देखा कि दरवाजे के पास कोई नहीं था।
कृष्ण घबराकर उठ खड़ा हुआ। दरवाजे की तरफ देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। वह कमरे से बाहर निकलने की कोशिश करता है, लेकिन दरवाजा किसी अजीब तरीके से लॉक हो चुका था। वह कमरे के चारों ओर देखा और उसे कुछ अजीब सी छायाएँ नजर आने लगीं। छायाएँ दीवारों पर सरक रही थीं, और वह महसूस कर रहा था कि घर में जैसे कोई प्रेतवाधित शक्ति उसे घेरने लगी हो। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा था, लेकिन उसका दिल तेजी से धड़क रहा था।
तभी अचानक उसने एक कटी-कटी आवाज़ सुनी, जैसे कोई जंजीर खींच रहा हो। आवाज़ तेज़ होती जा रही थी, और कृष्ण का दिल धड़कते हुए जैसे रुकने वाला था। वह भयभीत होकर कमरे से बाहर निकलने की कोशिश करता है, लेकिन अब कमरे में अंधेरा छा चुका था। अंधेरे में, उसे महसूस हुआ कि किसी की मौजूदगी आसपास है। अचानक उसे एक आहट सुनाई दी, और वह पलटकर देखता है तो वह देखता है कि एक बुरी शक्ल वाला भूत उसके सामने खड़ा है।
भूत की आँखों से खून बह रहा था, और उसका चेहरा जल चुका था। उसकी हंसी सुनकर कृष्ण का दिल कांपने लगा। वह डर के मारे कांपते हुए उस भूत से पूछता है, "तुम कौन हो? तुम क्यों मुझे परेशान कर रहे हो?" लेकिन भूत की हंसी और तेज हो गई। अचानक वह भूत कृष्ण की ओर बढ़ने लगा। उसकी हंसी मानो पूरी हवा में गूंज रही थी, और कृष्ण की हालत और भी खराब हो रही थी। वह डर के मारे बेकाबू हो चुका था।
कृष्ण ने डरते हुए कमरे से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन भूत ने उसे पकड़ लिया। उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि कृष्ण किसी भी तरह से बच नहीं पाया। वह अब असहाय था और अपनी जान बचाने की उम्मीद खो चुका था। भूत ने उसे उठाकर एक अंधेरे कमरे में फेंक दिया और कहा, "तुमने मेरी मदद नहीं की, अब तुम भी मेरी तरह यहाँ रहोगे।" कृष्ण की आँखों में डर और आंसू थे। वह समझ गया था कि यह घर एक शापित स्थान था, जहाँ आत्माएँ और भूत अपनी सज़ा भुगत रहे थे।
कृष्ण की आंखों में डर और आंसू थे। वह अब समझ गया था कि इस घर में केवल भूत नहीं, बल्कि उन आत्माओं का वास था जिन्होंने कभी न्याय नहीं पाया था। भूत ने उसे चेतावनी दी कि वह घर छोड़ दे, क्योंकि यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को उसी का सामना करना पड़ता था। कृष्ण को महसूस हुआ कि वह केवल एक इंसान नहीं, बल्कि उन आत्माओं की दया पर था जो वर्षों से उस घर में बुरी तरह से फंसी हुई थीं।
रातभर कृष्ण डर के मारे भूत के पास पड़ा रहा, और सुबह के समय उसे उस घर से बाहर निकलने का मौका मिला। वह जैसे ही घर से बाहर आया, उसकी हालत देखकर गाँव वाले समझ गए कि जो कुछ भी हुआ था वह सच था। कृष्ण ने फिर कभी उस घर के पास जाने की हिम्मत नहीं की। गाँववालों ने भी उस घर को और अधिक दूर से देखना शुरू किया, और यह घर अब एक खौ़फनाक स्थल बन चुका था। कोई भी उस जगह के बारे में ज्यादा बात नहीं करता था, और लोग उस घर से जितना दूर रह सकते थे, उतना अच्छा समझते थे।