बहुत समय पहले एक छोटे से गाँव के पास एक शांत झील थी। झील का पानी बहुत ही साफ और ठंडा था, और उसके किनारे पर हरे-भरे पेड़ थे। यह झील इतनी खूबसूरत थी कि लोग दूर-दूर से यहाँ घूमने आते थे। झील के पास एक बहुत ही खास घटना होती थी, जिसे "शांत झील का मेला" कहा जाता था।

इस मेले में सभी जानवर, पक्षी और पेड़ मिलकर झील के किनारे आकर खुशी मनाते थे। यह मेला हर साल झील के पास के जंगल में आयोजित होता था। इस दिन सारे जानवर अपनी अपनी खासियत दिखाते, और सभी पेड़ एक दूसरे से अपनी सुंदरता की कहानियाँ सुनाते थे। इस मेले का सबसे अच्छा हिस्सा यह था कि कोई भी जानवर या पेड़ एक दूसरे से बेहतर नहीं होता था। सभी अपनी अपनी भूमिका में खास थे।

एक दिन, एक नन्हा खरगोश जिसका नाम बबलू था, ने सुना कि इस साल भी "शांत झील का मेला" होने वाला है। बबलू बहुत उत्साहित था और उसने सोचा, "क्या मैं इस मेले में कुछ खास कर पाऊँगा?" बबलू को अपनी छोटी सी क्यूटनेस पर बड़ा गर्व था, लेकिन उसे डर था कि मेले में उसके जैसे छोटे जानवर की कोई अहमियत नहीं होगी।

मेले के दिन बबलू झील के पास पहुँचा। वहाँ उसे पहले से ही बहुत सारे जानवर मिल गए थे। हाथी अपनी बड़ी-बड़ी टाँगों के साथ चल रहा था, तो बंदर झूलते हुए हँसी-मजाक कर रहे थे। पक्षी अपने रंग-बिरंगे पंख फैलाकर गा रहे थे। सभी बहुत खुश थे। बबलू थोड़ा घबराया हुआ था और उसने सोचा, "क्या मैं भी इन सब के बीच खुश हो पाऊँगा?"

तभी एक बुजुर्ग हाथी ने बबलू को देखा और उसे पास बुलाया। हाथी ने कहा, "बबलू, तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम छोटे हो, लेकिन तुम्हारी ऊर्जा और दिल से तुम सबसे खास हो।" बबलू ने सोचा, "क्या वाकई में?" और उसे थोड़ी राहत मिली।

मेले में हर कोई अपनी ख़ासियत दिखा रहा था, लेकिन बबलू के पास कोई विशेषता नहीं थी। फिर उसने सोचा, "मैं तो झील के किनारे की घास पर क्यूट तरीके से कूद सकता हूँ।" और बबलू ने छोटे-छोटे क़दमों से कूदते हुए झील के पानी में अपनी छाया देखी। अचानक उसे एहसास हुआ कि वह अपनी छोटी क्यूटनेस से झील के पानी में सबसे सुंदर परछाई बना रहा था।

सभी जानवरों ने बबलू की यह अदा देखी और सबने उसका साथ दिया। बबलू ने झील में कूदते हुए अपनी मज़ेदार हरकतें दिखाईं, और सभी जानवरों ने उसे देखकर खुशी से तालियाँ बजाईं। इसने बबलू को यह सिखाया कि हर किसी में अपनी ख़ासियत होती है, और हमें कभी भी अपने आकार या रूप से न डरकर अपनी विशेषता को पहचानना चाहिए।

"शांत झील का मेला" अब बबलू का पसंदीदा दिन बन चुका था। इस दिन ने उसे सिखाया कि खुशियाँ किसी भी आकार, रूप या उम्र से नहीं आतीं। खुशियाँ तो उस प्यार और साथ में हैं जो हम अपने दोस्तों के साथ बांटते हैं।

इस मेले के बाद बबलू हर दिन खुश रहता था और अब वह अपने जीवन की सबसे छोटी खुशियों को भी अच्छे से मनाता था। और वह जानता था कि जैसे "शांत झील का मेला" हर साल होता है, वैसे ही खुशी को हर दिन अपने साथ लेकर चलना चाहिए।

सीख: "खुश रहने के लिए हमें अपनी छोटी-छोटी खुशियों को समझना चाहिए। जीवन में हर किसी की ख़ासियत होती है, हमें उसे पहचानना चाहिए।"

समाप्त