रात के अंधेरे में हर चीज़ रहस्यमयी लगती थी। शहर से दूर, एक सुनसान गांव के बाहर, एक पुरानी हवेली खड़ी थी, जहां कई सालों से कोई नहीं गया था। लोगों का कहना था कि वहां एक भयानक आत्मा भटकती थी – एक सिर कटा भूत, जो अपनी गर्दन ढूंढ रहा था।

विक्रम, जो कि एक खोजी पत्रकार था, इस भूतिया कहानी की सच्चाई जानने के लिए उस हवेली में रात बिताने का फैसला करता है। गांव वालों ने उसे बहुत समझाया कि वह वहां न जाए, लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ा रहा।

हवेली में घुसते ही विक्रम ने एक अजीब सन्नाटा महसूस किया। चारों ओर सिर्फ़ हवा की सरसराहट और दूर कहीं उल्लू की डरावनी आवाज़ गूंज रही थी। जैसे ही उसने टॉर्च जलाकर आगे बढ़ना शुरू किया, उसे सीढ़ियों पर किसी के चलने की हल्की आवाज़ सुनाई दी। लेकिन जब उसने पीछे मुड़कर देखा, तो वहाँ कोई नहीं था।

विक्रम ने अपनी सांस रोकी और आगे बढ़ा। हवेली के अंदर एक बड़ा हॉल था, जिसमें पुरानी, जर्जर हालत में पड़ी कुर्सियां और मेज़ें थीं। तभी अचानक, एक खिड़की अपने आप खुली और ज़ोर की हवा अंदर आई। उस हवा के साथ ही एक सड़े हुए खून की बदबू फैल गई।

तभी विक्रम ने देखा—एक परछाई, एक अधूरा शरीर, बिना सिर वाला! उसका शरीर तड़प रहा था, और वह अपने दोनों हाथों से जैसे अपना कटा हुआ सिर खोज रहा था। विक्रम के हाथ-पैर कांपने लगे। उसने अपनी टॉर्च की रोशनी उसकी ओर घुमाई, और तभी, वह परछाई ज़ोर से चिल्लाई—"मेरा सिर कहां है?"

विक्रम ने दौड़कर बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा अपने आप बंद हो गया। हवेली की दीवारों से अजीब सी आवाजें आने लगीं, जैसे कोई दर्द से कराह रहा हो। अचानक, उसे महसूस हुआ कि कोई चीज़ उसके कंधे पर हाथ रख रही है। उसने डर के मारे मुड़कर देखा – एक सड़ा-गला हाथ!

वह हाथ उसी सिर-कटे भूत का था। उसकी आँखें गहरे अंधेरे में लाल चमक रही थीं। विक्रम की धड़कन तेज़ हो गई। भूत ने अपनी उंगली उठाई और हवेली की एक दीवार की ओर इशारा किया। वहां, एक पुरानी तस्वीर टंगी थी, जिसमें एक आदमी का चेहरा कटा हुआ था।

विक्रम को एहसास हुआ कि यह भूत किसी से बदला लेना चाहता था। गांव वालों की कहानियों के मुताबिक, यह आत्मा राजा हरिदत्त की थी, जिसे वर्षों पहले धोखे से उसके ही सेनापति ने मारकर उसकी गर्दन काट दी थी। राजा की आत्मा अभी भी शांति नहीं पा रही थी।

विक्रम ने हिम्मत जुटाई और दीवार की उस तस्वीर को उठाया। तभी, ज़ोर से हवा का झोंका आया और हवेली हिलने लगी। भूत ज़ोर से चिल्लाया—"मुझे न्याय चाहिए!" विक्रम को समझ आ गया कि यह आत्मा तब तक मुक्त नहीं होगी जब तक उसका बदला पूरा नहीं होता।

अगले दिन, विक्रम ने गांव में उस पुराने राजा की कहानी को फिर से खोजा और जाना कि वह सेनापति अब भी इस गांव के एक वंशज के रूप में रह रहा था। जब वह उस व्यक्ति से मिलने गया, तो उसे महसूस हुआ कि जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसके साथ चल रही थी।

जब विक्रम ने उस व्यक्ति को राजा की हत्या के बारे में बताया, तो अचानक वहां की सारी लाइटें बंद हो गईं। कमरे में अंधेरा छा गया और उसी समय, एक भयानक चीख गूंजी। जब रोशनी वापस आई, तो उस सेनापति का वंशज ज़मीन पर गिरा हुआ था, और उसके चेहरे पर डर की एक झलक थी।

तब से वह हवेली शांत हो गई। राजा हरिदत्त की आत्मा को आखिरकार शांति मिल गई थी। लेकिन गांव वाले अब भी कहते हैं कि अगर कोई रात के अंधेरे में हवेली के पास जाए, तो वह एक धीमी फुसफुसाहट सुन सकता है—"मेरा सिर कहां है?"

कुछ महीनों बाद, विक्रम को एक अजीब पत्र मिला। पत्र में सिर्फ एक ही वाक्य लिखा था—"हवेली फिर से जाग गई है।" उसे लगा कि शायद यह कोई मजाक होगा, लेकिन गांव से खबर आई कि वहां रात को फिर से अजीब रोशनी दिखने लगी थी।

जिज्ञासा में, विक्रम एक बार फिर हवेली पहुंचा। इस बार उसे दरवाजा टूटा हुआ मिला। अंदर घुसते ही उसे फर्श पर सूखा खून दिखाई दिया। हवा में वही सड़ी हुई बदबू थी। और फिर, सीढ़ियों से उतरती हुई एक परछाई दिखी—बिना सिर वाला शरीर, लेकिन इस बार, उसके हाथों में एक पुरानी तलवार थी।

भूत फिर से लौट आया था। लेकिन क्यों? क्या कुछ और अधूरा था? विक्रम ने महसूस किया कि शायद राजा की आत्मा को पूरी मुक्ति नहीं मिली थी। उसने उस पुरानी तस्वीर की ओर देखा, लेकिन इस बार, उसमें कुछ नया था—उसकी आंखें लाल हो चुकी थीं।

अचानक, हवेली की दीवारों पर खून टपकने लगा। विक्रम ने दीवार पर हाथ लगाया और उसे महसूस हुआ कि यह असली खून था! तभी उसे महसूस हुआ कि कोई बहुत पास खड़ा है। उसने धीरे-धीरे मुड़कर देखा—राजा हरिदत्त की आत्मा विक्रम के सामने थी।

"अब भी अधूरा है..." आत्मा की धीमी, भयावह आवाज़ आई। विक्रम समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या कह रहा था। तभी हवेली की जमीन कांपने लगी। विक्रम ने देखा कि जमीन पर कुछ लिखा हुआ था—"मेरा सिर अब भी कैद है।"

विक्रम को एहसास हुआ कि राजा का सिर अब भी कहीं छिपा हुआ था। क्या वह सिर मिलेगा? क्या आत्मा को पूर्ण मुक्ति मिलेगी? या हवेली हमेशा के लिए एक रहस्य बनी रहेगी? यह अब तक किसी को नहीं पता...

विक्रम ने फिर से पुरानी किताबों का खजाना खंगाला और पाया कि राजा की गर्दन को काटने वाला सेनापति उस गांव में ही मर चुका था। लेकिन उसकी आत्मा भी हवेली में भटक रही थी, यह एक और अजीब सच था। विक्रम अब जानने लगा कि हवेली का रहस्य केवल राजा तक ही सीमित नहीं था, बल्कि वह एक पुराना गहरा शाप था। यह शाप सदियों से उसके वंशजों को परेशान कर रहा था।

विक्रम के मन में अब यह सवाल था कि क्या राजा का सिर अंततः उसकी आत्मा को शांति देगा, या फिर यह एक अनसुलझा रहस्य बना रहेगा। और क्या विक्रम इस भूतिया जगह से जिंदा बाहर आ पाएगा? या फिर उसका भी नाम हवेली की दीवारों में दर्ज हो जाएगा?

एक रात विक्रम ने फिर से हवेली का रुख किया। उसने निश्चय किया कि वह राजा का सिर खोजेगा और अंततः उसका बदला पूरा करेगा। हवेली की दीवारें और खिड़कियां उसे जकड़े हुए थीं, जैसे वह हर कदम पर राजा की आत्मा की ओर बढ़ रहा हो। और जैसे ही वह पुराने कमरे में पहुंचा, उसने देखा कि जमीन में गहरी दरारें थीं—क्या यह दरारें राजा के कटी हुए सिर तक पहुंचने का रास्ता थीं?

इस यात्रा का परिणाम क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा। विक्रम और हवेली के बीच एक अंतिम संघर्ष चल रहा था, जो अब तक किसी ने नहीं देखा। लेकिन एक बात जरूर साफ थी—यह रहस्य अब तक अनसुलझा था, और शायद अब भी उस आत्मा को शांति मिलना बाकी था।