एक छोटे से गाँव में एक प्यारी सी लड़की रहती थी जिसका नाम था तारा। तारा बहुत खुशमिजाज और प्यारी थी, लेकिन एक समस्या थी - उसे सर्दी और ठंडी हवाओं से डर लगता था। वह हमेशा चादर में लिपटी रहती और गर्मी की तलाश करती रहती।

एक दिन, तारा अपने बगीचे में खेल रही थी, तभी उसने देखा कि सूरज की किरणें धीरे-धीरे ज़मीन पर पड़ रही थीं और बगीचे में सब कुछ सोने जैसा चमक रहा था। तारा ने सोचा, "क्या होगा अगर मैं सूरज की किरणों को अपनी चादर बना लूँ?"

तारा ने अपनी माँ से कहा, "माँ, मुझे धूप की प्यारी चादर चाहिए!" माँ हंसी और बोली, "धूप की चादर? यह तो सिर्फ एक कल्पना है, तारा।" लेकिन तारा ने हार नहीं मानी। वह बाहर दौड़ते हुए चली गई और सूरज की किरणों में अपना चेहरा लहराने लगी।

जैसे ही तारा सूरज की किरणों में बिखरी धूप में बैठी, उसे महसूस हुआ कि धूप ने उसे गले लगा लिया था। उसकी त्वचा पर एक गर्माहट छाई और उसे सर्दी का कोई अहसास नहीं हुआ। तारा को यह अनुभव बहुत अच्छा लगा। उसने अपनी आँखें बंद की और धूप के नीचे बिन चादर के खेलती रही।

तारा ने देखा कि सूरज की धूप हर दिन अलग-अलग तरीके से उसके आस-पास फैलती थी। कभी वह हल्की होती, कभी तेज़। तारा को समझ में आया कि सूरज की किरणें न केवल गर्मी देती थीं, बल्कि वे उसकी चादर भी बन सकती थीं, जो उसे सर्दी से बचाए रखती थीं। वह अब सर्दियों से डरने की बजाय धूप की प्यारी चादर में लिपटी रहती थी।

एक दिन, तारा बगीचे में खेलते हुए एक छोटे से पालतू कबूतर को देखकर उसकी मदद करने आई। कबूतर की पंखों में थोड़ी सी ठंडक थी और वह काँप रहा था। तारा ने उसे अपनी प्यारी धूप की चादर दिखा दी और कहा, "देखो, यह धूप तुम्हें भी गर्मी दे सकती है।" कबूतर ने धूप में बैठकर महसूस किया और उसकी ठंडक दूर हो गई।

तारा ने कबूतर से कहा, "धूप कभी भी हमें छोड़ती नहीं है, बस हमें उसकी तरफ देखना होता है। देखो, तुम्हारे लिए भी यह धूप चादर बन गई है।" कबूतर खुशी-खुशी उड़ा और तारा ने सोचा, "धूप ही तो है जो हमें हमेशा अपना साथ देती है, चाहे सर्दी हो या गर्मी।"

इस तरह तारा ने सर्दी से डरना छोड़ दिया और सूरज की प्यारी धूप को अपना सच्चा दोस्त मान लिया। अब वह रोज़ धूप में खेलती और खुश रहती। उसने सिखा कि कभी भी परिस्थिति के अनुसार डरना नहीं चाहिए, बल्कि हर परिस्थिति में खुश रहकर उसका सामना करना चाहिए।

सीख: "धूप की तरह हमें भी अपनी खुशियों को सबके साथ बांटना चाहिए। यह हमें और दूसरों को गर्मी और सुकून देती है।"

समाप्त