वीरेंद्र एक दिन अपने पुराने शहर से बाहर काम की तलाश में एक नए शहर आया। यह शहर नया था, और यहां के लोग, सड़कें, माहौल सब कुछ अजनबी था। उसने सोचा था कि यहां आकर उसे एक नया मौका मिलेगा, लेकिन जल्द ही उसे अहसास हुआ कि यह शहर उससे ज्यादा परिचित है, जितना वह समझता था। यह शहर केवल एक जगह नहीं, बल्कि उसके अतीत की परछाई था, जिसे वह कभी भी नहीं छोड़ सकता था।

वीरेंद्र को एक होटल में रुकने की जगह मिली। वह नए शहर की सड़कों पर घूमता रहा, लेकिन कुछ ऐसा था जो उसे बेचैन कर रहा था। लोग उसे देख कर मुंह फेर लेते थे, जैसे वह किसी से छुपा हुआ हो। एक दिन, जब वह शहर के एक पुराने पार्क में घूमने गया, उसे एक अजनबी ने देखा और कहा, "तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम्हारे जैसे लोग इस शहर में नहीं रहते।" वह व्यक्ति अचानक गायब हो गया, जैसे वह किसी के चक्रव्यूह में फंसा हो।

वीरेंद्र का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसे महसूस हुआ कि वह किसी बड़े जाल में फंसता जा रहा था। वह शहर में कुछ और दिनों तक रुकने का फैसला करता है और धीरे-धीरे उस अजनबी व्यक्ति का पीछा करना शुरू कर देता है। उसका पीछा करते हुए, वीरेंद्र को पता चलता है कि यह व्यक्ति उसे जानता था, और वह उसकी ज़िंदगी के बारे में बहुत कुछ जानता था—वह एक रहस्यमयी अतीत था, जिसका वीरेंद्र से कुछ लेना-देना था।

एक रात, जब वीरेंद्र सोने के लिए तैयार हो रहा था, उसे अचानक खिड़की से बाहर अजीब सी आवाज़ सुनाई दी। उसने खिड़की से देखा और देखा कि वह अजनबी व्यक्ति पार्क के पास खड़ा था, और उसकी आंखों में एक खौफनाक आभा थी। वीरेंद्र तुरंत बाहर भागा और उस व्यक्ति से मिलने की कोशिश की, लेकिन जब तक वह वहां पहुंचता, वह व्यक्ति गायब हो चुका था।

वीरेंद्र को समझ में आया कि वह शहर और उस अजनबी के बीच एक खतरनाक खेल का हिस्सा बन चुका था। अगले कुछ दिनों में, उसने उस व्यक्ति के बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया। उसे पता चला कि वह व्यक्ति सिर्फ एक साधारण अजनबी नहीं था, बल्कि वह शहर का एक अंधेरा रहस्य था, जो वीरेंद्र के अतीत से जुड़ा हुआ था। उसे यह भी पता चला कि उस व्यक्ति का नाम कृष्णा था, और वह वीरेंद्र का पुराना दोस्त था, जिसे वीरेंद्र ने एक पुराने हादसे के बाद छोड़ दिया था।

कृष्णा ने वीरेंद्र से अपनी कड़ी का बदला लेने की ठानी थी। उसने वीरेंद्र को उस शहर में घेर लिया था, जहां उसे अपने अतीत को स्वीकार करना पड़ेगा। अब वीरेंद्र को यह तय करना था कि वह अपने अतीत से भागेगा या उसे स्वीकार करेगा। लेकिन यह खेल बहुत खतरनाक था, और उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि वह एक बड़ी साजिश का हिस्सा था।

एक रात, जब वीरेंद्र कृष्णा से मिलने पार्क में गया, उसे एहसास हुआ कि कृष्णा सिर्फ उसे नहीं, बल्कि उस शहर के हर निवासी को अपने जाल में फंसा चुका था। यह शहर केवल वीरेंद्र का नहीं था, बल्कि यह शहर सबका था, जिनकी ज़िंदगी एक गहरी साजिश का हिस्सा बन चुकी थी। वीरेंद्र अब उस शहर के साये से बाहर नहीं निकल सकता था।

वीरेंद्र ने अपनी सारी ताकत लगाकर कृष्णा का सामना किया और अपने अतीत को स्वीकार किया। कृष्णा ने वीरेंद्र को यह समझाया कि उसके द्वारा किए गए कृत्य कभी भी उसे पीछा नहीं छोड़ेंगे। वह जो कुछ भी था, वही उसका भविष्य बन चुका था। वीरेंद्र ने अंत में यह सिखा कि अतीत को छोड़ने के लिए हमें उसे पूरी तरह से स्वीकार करना पड़ता है, नहीं तो वह हमेशा हमारी जिंदगी में रहेगा।

लेकिन कृष्णा की बातें वीरेंद्र के मन में गहरी बैठ गईं। वह रात भर जागता रहा, सोचता रहा कि क्या वह सचमुच अपने अतीत को भुला सकता था या यह हमेशा उसके साथ रहेगा। उसकी जिंदगी में हर कदम पर वह पुराना हादसा उसे घेरता था, जैसे उसका पीछा करने वाला कोई साया हो। वीरेंद्र अब यह जानता था कि वह केवल कृष्णा से नहीं, बल्कि खुद अपने भीतर से भी लड़ाई लड़ रहा था।

कृष्णा ने वीरेंद्र को बताया कि वह एक भूतिया शक्ति का शिकार था। शहर की सड़कों और गलियों में एक अजीब सा एहसास था, जैसे ये सब किसी अंधेरे बल के नियंत्रण में हो। वीरेंद्र को समझ में आया कि यह शहर नहीं, बल्कि यह शहर का साया था, जो उसे अपने जाल में फंसा चुका था। अब वह तय करना चाहता था कि क्या वह इस जाल से बाहर निकलने के लिए कुछ करेगा, या हमेशा इस अंधेरे में रहेगा।

अगले कुछ दिन, वीरेंद्र ने इस शहर को और गहराई से देखा। वह कुछ और पुराने स्थानों पर गया, जहाँ उसे अपने अतीत से जुड़ी और भी बातें मिलीं। वह अजनबी कृष्णा के अलावा भी कई लोगों को देखता था, जिनकी ज़िंदगियाँ इस साया के प्रभाव में थीं। उसे लगा कि यह साया केवल उसका नहीं था, बल्कि यह शहर का हर व्यक्ति उस साया के नीचे जी रहा था।

वीरेंद्र ने शहर की परछाइयों को समझने के लिए खुद को और अधिक खोजने का निर्णय लिया। वह दिन-रात इस साये के बारे में सोचता रहा, और धीरे-धीरे उसने यह समझ लिया कि इसे तोड़ने का एक तरीका है। यह साया, जो हर व्यक्ति के भीतर था, उसे केवल स्वीकार किया जा सकता था, और उसके साथ शांति बनाए रखने का सबसे अच्छा तरीका था कि इसे भागने की बजाय सामना किया जाए।

एक दिन, वीरेंद्र ने कृष्णा से अंतिम बार मुलाकात की। अब वह अपने अतीत को पूरी तरह से स्वीकार कर चुका था और वह जानता था कि वह इस साया से तभी लड़ सकता था, जब वह इसे अपने भीतर का हिस्सा माने। कृष्णा ने उसकी इस सोच का सम्मान किया और कहा, "तुमने सही निर्णय लिया है, वीरेंद्र। अब तुम अपने अतीत को समझ सकते हो, और इससे मुक्त हो सकते हो।"

वीरेंद्र ने कृष्णा से कहा, "मैंने यह महसूस किया कि अतीत का साया कभी खत्म नहीं होता। हम जब तक उसे अपने भीतर पूरी तरह से स्वीकार नहीं करते, तब तक वह हमें हमेशा घेरता रहेगा।" कृष्णा ने सिर हिलाया और कहा, "तुम्हारा वक्त अब आ चुका है। इस साया को हम अब खत्म कर सकते हैं।"

उस दिन के बाद, वीरेंद्र ने शहर में अपना नया जीवन शुरू किया। वह अब अतीत के साए में नहीं जीता था, और कृष्णा के साथ मिलकर उसने उस साया को हराने की योजना बनाई थी। लेकिन वह जानता था कि यह केवल शुरुआत थी, और उसे अब पूरी दुनिया से अपने साये को जीतना था।