एक समय की बात है, एक छोटे से शहर में एक व्यक्ति रहता था जिसका नाम दीपक था। दीपक का जीवन साधारण था, लेकिन उसकी सोच और उसकी नीयत में कुछ खास था। वह हमेशा दूसरों की मदद करता और बिना किसी स्वार्थ के अपने काम करता। लोगों को उसकी ईमानदारी और मेहनत से बहुत प्यार था, लेकिन उसका नाम किसी बड़े पद पर नहीं था।

दीपक ने कभी अपने काम में किसी प्रकार का दिखावा नहीं किया। वह एक छोटे से स्कूल में अध्यापक था, और उसकी पूरी कोशिश रहती थी कि वह बच्चों को अच्छे संस्कार और शिक्षा दे। उसके पास बहुत साधन नहीं थे, लेकिन वह हमेशा अपने विद्यार्थियों के लिए कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करता। उसकी एक विशेषता यह थी कि वह छात्रों को सिर्फ किताबों से नहीं, बल्कि जीवन से जुड़े अच्छे मूल्यों से भी सिखाता था।

एक दिन दीपक का एक छात्र, मोहन, उसके पास आया और बोला, "गुरुजी, मुझे इस शहर में कोई पहचान नहीं मिल रही है। मैं बहुत मेहनत करता हूं, लेकिन कोई भी मुझे अहमियत नहीं देता।" दीपक ने मोहन से मुस्कुराते हुए कहा, "मोहन, पहचान सिर्फ नाम से नहीं आती, बल्कि कर्मों से आती है। अगर तुम सही दिशा में मेहनत करोगे और नेक काम करोगे, तो तुम्हारी पहचान भी बनेगी।"

मोहन ने दीपक की बातों को गंभीरता से लिया और अपनी मेहनत को दोगुना कर दिया। उसने न केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया, बल्कि वह समाज सेवा में भी भाग लेने लगा। वह गरीब बच्चों को पढ़ाने लगा, जरूरतमंदों के लिए खाद्य सामग्री इकट्ठा करने लगा और हर उस काम में हाथ बंटाने लगा जिससे समाज को फायदा हो सके। उसकी यह मेहनत और समर्पण लोगों के बीच धीरे-धीरे पहचाना जाने लगा।

एक दिन शहर के प्रमुख ने मोहन से मिलने का समय तय किया। उसने मोहन को बुलाया और कहा, "तुम्हारी मेहनत और नेक कामों को देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। तुमने सचमुच अपने कर्मों से इस समाज में एक पहचान बनाई है। अब तुम्हें एक महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया जाता है, ताकि तुम और अधिक लोगों की मदद कर सको।" मोहन को यह सुनकर बहुत गर्व महसूस हुआ, लेकिन उसने दीपक की बात याद की, "कर्मों से पहचान मिलती है, नाम से नहीं।"

मोहन ने अपने गुरु की शिक्षा को सच्चे दिल से अपनाया था। अब वह न केवल एक अच्छे विद्यार्थी था, बल्कि एक प्रेरणास्त्रोत भी बन चुका था। उसने यह साबित कर दिया था कि अगर हमारी नीयत सही हो और हम सही तरीके से मेहनत करें, तो हमें कोई न कोई पहचान मिल ही जाती है।

दीपक के बारे में भी अब लोग अच्छे शब्दों में बात करने लगे थे। उन्होंने कभी किसी से अपनी मदद के बदले कोई अपेक्षा नहीं की थी, लेकिन अब लोग उसे न केवल एक शिक्षक, बल्कि एक महान इंसान के रूप में देखने लगे थे। लोग उसकी मदद और मार्गदर्शन लेने के लिए उसके पास आते थे। दीपक ने कभी भी यह नहीं सोचा था कि उसकी पहचान एक दिन समाज में इतनी बड़ी होगी, लेकिन उसके कर्मों ने उसकी पहचान को स्थायी बना दिया।

मोहन और दीपक की कहानी यह सिखाती है कि कर्मों से ही हमारी पहचान बनती है। अगर हम सही दिशा में मेहनत करें, नेक कार्य करें और समाज के भले के लिए काम करें, तो हमें एक दिन निश्चित रूप से सम्मान मिलेगा। पहचान का मतलब सिर्फ नाम नहीं होता, बल्कि यह उस काम से जुड़ा होता है जो हम समाज के लिए करते हैं।

आज भी दीपक का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है, क्योंकि उसने कभी यह नहीं सोचा कि वह क्या हासिल करेगा, बल्कि उसने अपने कार्यों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि सही कर्म और अच्छे कार्यों से हम दुनिया में अपनी पहचान बना सकते हैं। मोहन की तरह, सभी को यह समझना चाहिए कि कर्म ही हमारी पहचान का सबसे बड़ा प्रमाण होते हैं।

सीख: इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि नाम, प्रतिष्ठा, और पहचान केवल दिखावे से नहीं, बल्कि सच्चे और नेक कर्मों से मिलती है। हमें हमेशा यह समझना चाहिए कि कर्मों से ही हमारी पहचान बनती है और अच्छे कर्मों से ही हम समाज में अपना स्थान बना सकते हैं।

समाप्त!